Sunday, November 29, 2009



हम अकेले ही चले थे
जानिब-ए-मंजिल मगर,
लोग साथ आते गए
और कारवां बनता गया।

Monday, April 13, 2009


ठेठ पहाड़ी

गर्व से कहो की हम पहाड़ी हैं....आज की युवा पीड़ी सचमुच गुमशुदा जैसी है अपने नाम के आगे अपनी टाइटल लिखने में शर्म आती है इनको और पहाड़ी कहलाने में भी हिचकिचाते हैं ......उत्तराँचल या उत्तराखंडी कहलाने मेंगिलानी होती है इनको ..... अपनी बोली बोलने में कठिनाई महसूस होती है इनको ..... और अपने आदमी से तो मिलने में ही इनको परेशानी महसूस होती है बोली बोलना तो दूर की बात हैएक दूसरे को पूछते भी नही की तुम "कि भेजी नमस्कार.... तुम कै गांवा का छा" इतनी मीठी बोली है हमारी मिश्री से भी भी मीठी फ़िर भी गिट पिट गिट पिट अंग्रेजी बोलने में देरी नही करते हैंअपनी मर्यादा परम्परा का तो इनको अहसास ही नही हमारे विद्वानों का नाम भी नही मालूम इनको ...अपने आप को पहचान करने की कोशिश नही करतेहमारा सुंदर खानपान का ज्ञान नही इनको इनके पूर्वजो ने "बाड़ी" और "पल्यो" खाके इनको पला बड़ा किया अच्छी शिक्षा दी इनको और इस काबिल बनाया इनको की ये देश विदेश की सैर कर रहे हैं ५ स्टार होटलों में मजे कर रहे हैं जहाजो से सफर कर रहे हैं और डॉलर कमा रहे हैं इज्जत है इनकी फ़िर भी अपने धरातल से जुडे हुए नही हैं ये लोगऔर इनके बाद वाली संतान कैसी होगी इसकी परिकल्पना भी नही कर रहे हैं. भैजी, दीदी काका जी बोडा जी आदि शब्दों का इस्तेमाल भी नही करते हैं और तो और पहाड़ी गाना सुन ने का शौक रखते हैं लेकिन गुन गुनाते नही अपने ऋषि मुनिओं के नाम तक नही मालूम नही इनको.... गोत्र क्या होते हैं ये भी नही मालूम हमारे गाँव के भोजन व्यंजन तक नही मालूम और नही इनको मालूम की उत्तराँचल में कितनी कौथिक होते हैंऔर हाँ "बद्दनाथ" "नागार्जुन" "कालिंका" "गोरिल" "भगवती देवी" आदि आदि भी इनको मालूम नही जगर क्या होती है और क्यों लगायी जाती है ये भी नही मालूम इन देवी देवतावों के नाम से रोंगटे खडे हो जाते हैं पर स्वयं का पहाड़ी होने पर भी इनको कोई गर्व नही है मेरी तो प्रार्थना है भगवान् से की हे इश्वर इनको सदबुद्धी